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नई दिल्ली: भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में बहुत कुछ दांव पर लगा है। भारत का समुद्री तट बहुत बड़ा है, लगभग 7,517 किलोमीटर। यह पश्चिम एशिया,अफ्रीका और पूर्वी एशिया के व्यस्त व्यापार मार्गों के लिए महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों के बीच में स्थित है। भारत के पास अभी केवल दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं,जो अब उतने सक्षम नहीं हैं। तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर नौसेना की जरूरत ही नहीं,बल्कि आर्थिक विकास,रणनीतिक आवश्यकता और वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में भारत के उदय का प्रतीक भी होगा।रणनीतिक लिहाज से जरूरी क्यों?
भारत के लिए समुद्री सुरक्षा बहुत जरूरी है। इसलिए एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है। ये कैरियर समुद्र में भारत की ताकत को दर्शाते हैं और दूर देशों में भी हमारी रक्षा भी करते हैं। हॉर्मुज से मलक्का तक समुद्री रास्तों की सुरक्षा हमारे व्यापार के लिए जरूरी है। इस साल अदन की खाड़ी में हुए हमलों से भारत को भी नुकसान हुआ। भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। INS विक्रमादित्य रूस से 2013 में लिया गया था, जो पहले एडमिरल गोर्शकोव के नाम से जाना जाता था। INS विक्रांत 2022 में शामिल हुआ,जो भारत में बना पहला कैरियर है। यह भारत की तकनीकी ताकत दिखाता है।
हालांकि,परिचालन सीमाओं के कारण कभी-कभी केवल एक ही वाहक युद्ध के लिए तैयार रह पाता है। एक तीसरा वाहक होने से लगातार दो वाहक हमेशा तैनात रहेंगे। इससे भारतीय नौसेना पूर्वी और पश्चिमी दोनों समुद्री तटों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेगी और साथ ही मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) कार्यों के लिए भी तैयार रह सकेगी।
चीन की सोच दो कदम आगे
चीन अपनी नौसेना का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। ये भारत के लिए भी सबक है। भारत को तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की जरूरत है। AMCA और LCA Mk-2 प्रोजेक्ट्स को भी तेजी से पूरा करना होगा। इस हफ्ते कुछ वीडियो सामने आए हैं। इनमें चीन का नया छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान पहली बार उड़ान भरता दिख रहा है। लेकिन चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर,फ़ुज़ियान हकीकत बन गया है। इसने पहला समुद्री परीक्षण पूरा कर लिया है। जल्द ही इसे नौसेना में शामिल किया जाएगा,हालांकि कोई तारीख घोषित नहीं की गई है।
फुज़ियान 1 मई को शंघाई जियांगनान शिपयार्ड से अपने पहले समुद्री परीक्षण के लिए निकला था। 8 मई को यह वापस शिपयार्ड लौट आया। आठ दिनों के समुद्री परीक्षण के दौरान,फ़ुजियान ने अपने प्रणोदन(Propulsion), विद्युत प्रणालियों और अन्य उपकरणों का परीक्षण किया। 80,000 टन का यह एयरक्राफ्ट कैरियर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) से लैस है। यह तकनीक चीन को दुनिया की कई नौसेनाओं से आगे रखती है। EMALS एक नई तकनीक है जिससे विमानों को कैरियर से उड़ाना आसान होता है। चीन की योजना 2050 तक और भी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की है।
आर्थिक और औद्योगिक प्रभाव
तीसरा वाहक जहाज बनाना केवल एक रणनीतिक फैसला नहीं है,बल्कि यह अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा। 'विक्रांत' परियोजना से सीधे 2000 रोजगार सृजित हुए,लेकिन इसके अलावा 13,000 और रोजगार भी अप्रत्यक्ष रूप से पैदा हुए। इस जहाज के निर्माण में बड़े उद्योगों के साथ-साथ कई छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) ने भी हिस्सा लिया।
इसे 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया था। इससे रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी। एक नए वाहक जहाज की परियोजना से भी इसी तरह की आर्थिक गतिविधियां होंगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
भारत में जहाज निर्माण उद्योग का आर्थिक गुणक बहुत अधिक है। इसका मतलब है कि हर 1 रुपये के निवेश से अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त 1.82 रुपये की गतिविधियां पैदा होती हैं। इस पुनर्निवेश से सीधे रोजगार और सहायक उद्योगों जैसे स्टील,एल्यूमीनियम और इलेक्ट्रॉनिक्स को भी समर्थन मिलता है।
तकनीकी प्रगति
भारत के अगले वाहक जहाज में सबसे आधुनिक तकनीक होनी चाहिए ताकि वह दुनिया के अन्य देशों के बराबर रहे। हालांकि,'आईएनएस विक्रांत' में STBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) प्रणाली है,लेकिन अगले जहाज में EMALS और CATOBAR (कैटापल्ट-असिस्टेड टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) प्रणाली हो सकती है, जैसा कि चीन के 'फुजियान' जहाज में है।
इन सिस्टम से भारी विमान, ड्रोन (UAVs) और आधुनिक निगरानी उपकरणों को आसानी से उड़ाया जा सकेगा। परमाणु ऊर्जा से चलने वाले वाहक जहाजों का भी बहुत महत्व है। इन जहाजों की दूरी अधिक होती है और उन्हें कम ईंधन भरवाना पड़ता है। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा क्योंकि इनसे कार्बन उत्सर्जन कम होगा। हालांकि, इन जहाजों की लागत अधिक होती है, लेकिन लंबे समय में इनसे होने वाले फायदे शुरुआती निवेश से कहीं अधिक होंगे।
मानवीय सहायता और राजनयिक योगदान
2004 की सुनामी के बाद से भारत ने क्षेत्र में आपदा के समय सबसे पहले मदद पहुंचाने वाले देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। तब से लेकर अब तक,भारतीय नौसेना ने क्षेत्र के कई देशों की मदद की है,जिसमें कोविड-19 महामारी के दौरान भी शामिल है। कई मायनों में, भारतीय नौसेना भारत की कूटनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल बातों से,बल्कि कार्यों से भी पड़ोसी देशों की मदद करती है। बड़े जहाजों (वाहक) की मदद से भारत की राजनयिक ताकत और बढ़ेगी। भारत अपने पड़ोसी देशों की मदद कर सकता है, क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत कर सकता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है।
आलोचनाएं और चुनौतियां
सबसे पहले जो बात सामने आती है,वह है इन जहाजों की बहुत अधिक लागत। एक विमानवाहक पोत बनाना बेहद महंगा होता है,इसकी लागत हजारों करोड़ रुपये में जाती है। तीसरे वाहक जहाज की लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपये आंकी गई है। हालांकि,लंबे समय में इससे होने वाले फायदे,जैसे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलना और सुरक्षा में वृद्धि,इस खर्च को सही ठहराते हैं। सरकारी और निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी और खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके लागत कम की जा सकती है और जहाजों का समय पर निर्माण सुनिश्चित किया जा सकता है।
साइबर युद्ध,अंतरिक्ष युद्ध और अन्य नए युद्ध रणनीतियों के विकास के साथ,कुछ लोगों का मानना है कि बड़े पारंपरिक प्लेटफॉर्म जैसे वाहक जहाज भविष्य के युद्धों में उतने महत्वपूर्ण नहीं रहेंगे। हालांकि,पनडुब्बियों, युद्धपोतों और निगरानी प्रणालियों के साथ मिलकर काम करने पर,वाहक जहाज एक संतुलित नौसेना बल के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
भारत के लिए समुद्री सुरक्षा बहुत जरूरी है। इसलिए एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है। ये कैरियर समुद्र में भारत की ताकत को दर्शाते हैं और दूर देशों में भी हमारी रक्षा भी करते हैं। हॉर्मुज से मलक्का तक समुद्री रास्तों की सुरक्षा हमारे व्यापार के लिए जरूरी है। इस साल अदन की खाड़ी में हुए हमलों से भारत को भी नुकसान हुआ। भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। INS विक्रमादित्य रूस से 2013 में लिया गया था, जो पहले एडमिरल गोर्शकोव के नाम से जाना जाता था। INS विक्रांत 2022 में शामिल हुआ,जो भारत में बना पहला कैरियर है। यह भारत की तकनीकी ताकत दिखाता है।
हालांकि,परिचालन सीमाओं के कारण कभी-कभी केवल एक ही वाहक युद्ध के लिए तैयार रह पाता है। एक तीसरा वाहक होने से लगातार दो वाहक हमेशा तैनात रहेंगे। इससे भारतीय नौसेना पूर्वी और पश्चिमी दोनों समुद्री तटों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेगी और साथ ही मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) कार्यों के लिए भी तैयार रह सकेगी।
चीन की सोच दो कदम आगे
चीन अपनी नौसेना का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। ये भारत के लिए भी सबक है। भारत को तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की जरूरत है। AMCA और LCA Mk-2 प्रोजेक्ट्स को भी तेजी से पूरा करना होगा। इस हफ्ते कुछ वीडियो सामने आए हैं। इनमें चीन का नया छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान पहली बार उड़ान भरता दिख रहा है। लेकिन चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर,फ़ुज़ियान हकीकत बन गया है। इसने पहला समुद्री परीक्षण पूरा कर लिया है। जल्द ही इसे नौसेना में शामिल किया जाएगा,हालांकि कोई तारीख घोषित नहीं की गई है।
फुज़ियान 1 मई को शंघाई जियांगनान शिपयार्ड से अपने पहले समुद्री परीक्षण के लिए निकला था। 8 मई को यह वापस शिपयार्ड लौट आया। आठ दिनों के समुद्री परीक्षण के दौरान,फ़ुजियान ने अपने प्रणोदन(Propulsion), विद्युत प्रणालियों और अन्य उपकरणों का परीक्षण किया। 80,000 टन का यह एयरक्राफ्ट कैरियर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) से लैस है। यह तकनीक चीन को दुनिया की कई नौसेनाओं से आगे रखती है। EMALS एक नई तकनीक है जिससे विमानों को कैरियर से उड़ाना आसान होता है। चीन की योजना 2050 तक और भी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की है।
आर्थिक और औद्योगिक प्रभाव
तीसरा वाहक जहाज बनाना केवल एक रणनीतिक फैसला नहीं है,बल्कि यह अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा। 'विक्रांत' परियोजना से सीधे 2000 रोजगार सृजित हुए,लेकिन इसके अलावा 13,000 और रोजगार भी अप्रत्यक्ष रूप से पैदा हुए। इस जहाज के निर्माण में बड़े उद्योगों के साथ-साथ कई छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) ने भी हिस्सा लिया।
इसे 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया था। इससे रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी। एक नए वाहक जहाज की परियोजना से भी इसी तरह की आर्थिक गतिविधियां होंगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
भारत में जहाज निर्माण उद्योग का आर्थिक गुणक बहुत अधिक है। इसका मतलब है कि हर 1 रुपये के निवेश से अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त 1.82 रुपये की गतिविधियां पैदा होती हैं। इस पुनर्निवेश से सीधे रोजगार और सहायक उद्योगों जैसे स्टील,एल्यूमीनियम और इलेक्ट्रॉनिक्स को भी समर्थन मिलता है।
तकनीकी प्रगति
भारत के अगले वाहक जहाज में सबसे आधुनिक तकनीक होनी चाहिए ताकि वह दुनिया के अन्य देशों के बराबर रहे। हालांकि,'आईएनएस विक्रांत' में STBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) प्रणाली है,लेकिन अगले जहाज में EMALS और CATOBAR (कैटापल्ट-असिस्टेड टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) प्रणाली हो सकती है, जैसा कि चीन के 'फुजियान' जहाज में है।
इन सिस्टम से भारी विमान, ड्रोन (UAVs) और आधुनिक निगरानी उपकरणों को आसानी से उड़ाया जा सकेगा। परमाणु ऊर्जा से चलने वाले वाहक जहाजों का भी बहुत महत्व है। इन जहाजों की दूरी अधिक होती है और उन्हें कम ईंधन भरवाना पड़ता है। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा क्योंकि इनसे कार्बन उत्सर्जन कम होगा। हालांकि, इन जहाजों की लागत अधिक होती है, लेकिन लंबे समय में इनसे होने वाले फायदे शुरुआती निवेश से कहीं अधिक होंगे।
मानवीय सहायता और राजनयिक योगदान
2004 की सुनामी के बाद से भारत ने क्षेत्र में आपदा के समय सबसे पहले मदद पहुंचाने वाले देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। तब से लेकर अब तक,भारतीय नौसेना ने क्षेत्र के कई देशों की मदद की है,जिसमें कोविड-19 महामारी के दौरान भी शामिल है। कई मायनों में, भारतीय नौसेना भारत की कूटनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल बातों से,बल्कि कार्यों से भी पड़ोसी देशों की मदद करती है। बड़े जहाजों (वाहक) की मदद से भारत की राजनयिक ताकत और बढ़ेगी। भारत अपने पड़ोसी देशों की मदद कर सकता है, क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत कर सकता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है।
आलोचनाएं और चुनौतियां
सबसे पहले जो बात सामने आती है,वह है इन जहाजों की बहुत अधिक लागत। एक विमानवाहक पोत बनाना बेहद महंगा होता है,इसकी लागत हजारों करोड़ रुपये में जाती है। तीसरे वाहक जहाज की लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपये आंकी गई है। हालांकि,लंबे समय में इससे होने वाले फायदे,जैसे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलना और सुरक्षा में वृद्धि,इस खर्च को सही ठहराते हैं। सरकारी और निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी और खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके लागत कम की जा सकती है और जहाजों का समय पर निर्माण सुनिश्चित किया जा सकता है।
साइबर युद्ध,अंतरिक्ष युद्ध और अन्य नए युद्ध रणनीतियों के विकास के साथ,कुछ लोगों का मानना है कि बड़े पारंपरिक प्लेटफॉर्म जैसे वाहक जहाज भविष्य के युद्धों में उतने महत्वपूर्ण नहीं रहेंगे। हालांकि,पनडुब्बियों, युद्धपोतों और निगरानी प्रणालियों के साथ मिलकर काम करने पर,वाहक जहाज एक संतुलित नौसेना बल के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
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